रवींद्रनाथ टैगोर: भारतीय साहित्य के अनमोल रत्न
Rabindranath Tagore (Image Credit-Social Media)
रवींद्रनाथ टैगोर: भारतीय साहित्य और कला की दुनिया में रवींद्रनाथ टैगोर का नाम एक अमिट छाप छोड़ता है। उन्होंने न केवल लेखन किया, बल्कि अपने विचारों और भावनाओं के माध्यम से एक पूरी पीढ़ी को प्रेरित किया। उनकी कविताएं, गीत, उपन्यास, नाटक और चित्रकला आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जितनी कि उनके समय में थीं। हाल ही में, टैगोर से जुड़ी दो अनमोल वस्तुएं, उनकी एकमात्र मूर्ति और 35 पत्रों का संग्रह, कोलकाता में नीलाम की गईं। यह नीलामी कला प्रेमियों के लिए एक ऐतिहासिक अवसर साबित हुई और टैगोर के बहुआयामी व्यक्तित्व की नई परतें उजागर की। आइए इस नीलामी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
टैगोर: जीवन को कला में ढालने वाला
रवींद्रनाथ टैगोर (1861–1941) केवल एक कवि नहीं थे, बल्कि वे भारतीय नवजागरण के अग्रदूत, दार्शनिक, चित्रकार, संगीतज्ञ और स्वतंत्रता आंदोलन के सांस्कृतिक प्रतीक भी थे। वे पहले एशियाई थे जिन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार (1913) से सम्मानित किया गया। उन्होंने 'जन गण मन' की रचना की, जो आज भारत का राष्ट्रीय गान है।
नीलामी का ऐतिहासिक क्षण: टैगोर की विरासत
28 जून 2025 को कोलकाता के प्रसिद्ध नीलामीघर अस्तागुरु द्वारा एक अनोखी नीलामी का आयोजन किया गया, जिसे 'कलेक्टर्स चॉइस' नाम दिया गया। इस नीलामी में टैगोर द्वारा बनाई गई एकमात्र मूर्तिकला और उनके 35 दुर्लभ पत्र शामिल थे।
इस नीलामी का मुख्य आकर्षण वह मूर्ति थी, जिसे टैगोर ने 1883 में केवल 22 वर्ष की आयु में कर्नाटक के कारवार में बनाया था। इसका नाम 'The Heart' रखा गया, क्योंकि यह दिल के आकार की थी।
इस मूर्ति की अनुमानित कीमत 55 से 70 लाख रुपये थी, लेकिन इसे टैगोर प्रेमियों ने 1.04 करोड़ रुपये में खरीदा। यह मूर्ति टैगोर ने कादंबरी देवी की याद में बनाई थी, जो उनके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखती थीं।
टैगोर के पत्रों की नीलामी
ये पत्र रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा 1927 से 1936 के बीच प्रसिद्ध समाजशास्त्री धुर्जति प्रसाद मुखर्जी को लिखे गए थे। इनकी अनुमानित कीमत 5 से 7 करोड़ रुपये थी, और इन्हें 5.6 करोड़ रुपये में खरीदा गया।
इन पत्रों से टैगोर के जीवन के विचारशील और दार्शनिक पहलुओं की गहराई का पता चलता है। नीलामीघर के CMO मनसुखानी ने कहा कि यह नीलामी विशेष थी क्योंकि इसमें टैगोर के हाथों से लिखी गई पांडुलिपियों का संग्रह था, जो उनके मानसिक संसार की झलक प्रदान करता है।
सार्वजनिक संग्रहालय बनाम निजी संग्रह
इस नीलामी के बाद एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है कि क्या ऐसी अमूल्य धरोहरें सार्वजनिक संग्रहालयों में होनी चाहिए। सत्येंद्रनाथ टैगोर, जो रवींद्रनाथ के बड़े भाई थे, ने भी इस विषय पर विचार किया।
सत्येंद्रनाथ के परपोते सुमंतो चट्टोपाध्याय ने कहा कि यह मालिक का विशेषाधिकार है, लेकिन वे टैगोर की कलाकृतियों को संग्रहालयों में देखना पसंद करेंगे। टैगोर की कलाकृतियां मानवता की विरासत हैं।
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